Ticker

6/recent/ticker-posts

जीवन में शिक्षा का उद्देश्य

जाने शिक्षा का उद्देश्य



'सा विद्या या विमुक्तए'अर्थात विद्या या शिक्षा वह है जो हमें मुक्ति दिलाती है। यह मुक्ति अज्ञान से, अंधकार से, तथा अकर्मण्यता से है। बालक जन्म से लेकर जीवन पर्यंत कुछ न कुछ सीखता रहता है किंतु औपचारिक शिक्षा प्राप्ति का उद्देश उसके सामने स्पष्ट होना आवश्यक है। आज हमारी शिक्षा नीति केवल जीवन निर्वाह की शिक्षा व्यवस्था दे रही है जबकि होना यह चाहिए कि शिक्षा जीवन निर्वाह की अपेक्षा जीवन निर्माण का उद्देश्य पूर्ण करें। शिक्षा किसी भी राष्ट्र का मेरुदंड कही जा सकती है जो संस्कारवान, स्वस्थ, श्रम निष्ठ, संस्कृत निष्ठ, सांसी तथा कुशल नागरिकों का निर्माण कर सकें। इसलिए शिक्षा एक तरफ व्यक्ति निर्माण का कार्य करती है तो दूसरी और राष्ट्र निर्माण का भी अप्रत्यक्ष रूप से कार्य करती है।

यदि किसी राष्ट्र का समुचित विकास तथा उसके नागरिकों का सही व्यक्तित्व निर्माण करना है तो उनकी शिक्षा का सोद्दैशय होना अनिवार्य है। शिक्षा वस्तुत:कोई पाठ्यक्रम या डिग्री प्राप्त करना भर नहीं है बल्कि जीवन में सतत चलने वाली प्रक्रिया है जो कुछ ना कुछ सिखाती रहती है शिक्षा से ही व्यक्ति और राष्ट्र का चरित्र निर्माण होता है यदि किसी देश की शिक्षा अच्छी होगी तो उसके नागरिकों का चरित्र भी अच्छा होगा। गांधीजी भी शिक्षा को चरित्र निर्माण के लिए अनिवार्य मानते थे। वे कहते थे शिक्षा का सही उद्देश चरित्र निर्माण होना चाहिए।

आज शिक्षा के स्वरूप व शिक्षा प्रणाली में आई गिरावट के कारण ही अपने संचित ज्ञान तथा देश की महान परंपराओं के प्रति उपेक्षा का भाव माता-पिता व गुरुजनों के प्रति आदर के भाव में कमी विलासिता व सुविधाओं की ओर बढ़ता आकर्षण, प्रदर्शन प्रियता व उपभोक्तावाद आदि का प्रभाव जीवन में बढ़ रहा है। सत्य, अहिंसा, करुणा, अपरिग्रह, सहिष्णुता, ईमानदारी, तथा उदारता जैसे महान मानवीय मूल्य जीवन से लुप्त हो रहे हैं। मुलत: शिक्षा वह नहीं है जो हमने सीखी है बल्कि शिक्षा वह है जो हमें योग बनाती है

'नास्ति विद्या समं चक्षु' अर्थात विद्या के समान दूसरा नेत्र नहीं है। शिक्षा ही वह नेत्र है जो जीवन संघर्ष को जीतना सिखाती है।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ